21 August 2023

देखिए राष्ट्रवाद क्या है और भारत में राष्ट्रवाद का जन्म अठारहवी सदी में नहीं वैदिक संभ्यता में हुई थी

दोस्तों, आजकल राष्ट्रवाद को लेकर देशभर में खूब चर्चा है. लोगों के मन में सवाल उठ रहा है की राष्ट्रवाद  क्या है और राष्ट्रवाद का उदय कहा हुआ है. तो चलिए इन सारे बिेंदुओं पर विस्तार से बात करते हैं और समझते हैं कि राष्ट्रवाद क्या है और राष्ट्रवाद का जन्म अठारहवी सदी में नहीं वैदिक संभ्यता में हुई थी. साथियों आज वामपंथी इतिहासकारों द्वारा पढाया जाता है की राष्ट्रवाद का उदय पुनर्जागरण के बाद अट्ठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के युरोप में हुआ था. राष्ट्रवाद के प्रतिपादक जॉन गॉटफ्रेड हर्डर थे, जिन्होंने 18वीं सदी में पहली बार इस शब्द का प्रयोग करके जर्मन राष्ट्रवाद की नींव डाली. लेकिन अपने केवल दो-ढाई सौ साल पुराने ज्ञात इतिहास के बाद भी यह विचार बेहद शक्तिशाली और टिकाऊ साबित हुआ है. जब भारतीय संस्कृति की बात आती है तब कई पश्चिम के विद्वान यह मानने लगते हैं कि ब्रिटिश लोगों के कारण ही भारत में राष्ट्रवाद की भावना ने जन्म लिया. राष्ट्रीयता की चेतना ब्रिटिश शासन की देन है और उससे पहले भारतीय इस चेतना से अनभिज्ञ थे. पर यह सत्य नहीं है, भारत के प्राचीन इतिहास से नई पीढ़ी को राष्ट्रवादी प्रेरणा मिली है.
 
राष्ट्रवाद क्या है ?
दोस्तों, मैं चलताऊ परिभाषा नहीं दूंगा कि राष्ट्रवाद ये है. मैं किसी को उद्धृत भी नहीं करूंगा. मैं कोई कोट नहीं दूंगा और इतिहास नहीं खंगालूंगा. क्योंकि हम और आप जिस समाज में रह रहे हैं, वहां के अनुरूप ही राष्ट्रवाद की 

परिभाषा को समझना होगा और उसी उदाहरण से समझाना होगा. तो सिंपल है दोस्तों अगर आप अपने राष्ट्र को यानी देश को समझते हैं. अपने लोगों का सम्मान करते हैं. देश को आगे ले जाने के लिए अपना योगदान देते हैंं. आप मानवतावादी हैं. आप सबको साथ लेकर आगे चलने की चाहत रखते हैं तो फिर आप राष्ट्रवाद को अच्छी तरह से समझ रहे हैं. राष्ट्रवाद की कोई भारी भरकम परिभाषा नहीं होती है. यह कोई वाद नहीं है. यह हमारे भीतर का देश के प्रति प्रेम है. अपने लोगों के प्रति प्रेम है. यही सही रूप में राष्ट्रवाद है.

ऐसे तो आपको इस विषय पर तमाम लेख मिल जाएंगे लेकिन लेख को रटने की जगह, परिभाषाओं में उलझने की जगह प्रैक्टिकल होकर दिल खोलकर अपने देश के प्रति सम्मान प्रकट कीजिए, राष्ट्रवाद और कुछ नहीं है. दोस्तों, राष्ट्रवाद ऐसा कोई चीज नहीं है जो अचानक से आया हो. समाज और लोगों के रहन- सहन, आपसी एकता और सद्भाव ही राष्ट्रवाद की परिणति है. फिर भी यह माना जाता है कि अंग्रेजों के शासन के दौरान जुल्म को खत्म करने के दौरान जब देश के लोग इकट्ठा हुए और उस दौर में सभी एकता के सूत्र में बंधते हुए कंधे से कंधा मिलाकर ब्रिटिश से लोहा लिए तो वहां से आधुनिक राष्ट्रवाद की शुरुआत हुई. अपने देश के प्रति लोगों का जज्बा और प्रेम ही था, वह राष्ट्रवाद ही था जिसके दम पर हम आजाद हुए. और वे राष्ट्रवादी कहे जाएंगे, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी.

भारत में राष्ट्रवाद का जन्म:
भारत की राष्ट्रीय चेतना वेदकाल से अस्तित्वमान है. अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में धरती माता का यशोगान किया गया हैं. माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः (भूमि माता है और मैं पृथ्वी का पुत्र हूँ). विष्णुपुराण में तो राष्ट्र के प्रति का श्रद्धाभाव अपने चरमोत्कर्ष पर दिखाई देता है. इसमें भारत का यशोगान 'पृथ्वी पर स्वर्ग' के रूप में किया गया है. 

अत्रापि भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महागने
यतोहि कर्म भूरेषा ह्यतोऽन्या भोग भूमयः॥
गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत-भूमि भागे।
स्वर्गापस्वर्गास्पदमार्गे भूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥

इसी प्रकार वायुपुराण में भारत को अद्वितीय कर्मभूमि बताया गया है. भागवतपुराण में तो भारतभूमि को सम्पूर्ण विश्व में 'सबसे पवित्र भूमि' कहा गया है. इस पवित्र भारतभूमि पर तो देवता भी जन्म धारण करने की अभिलाषा रखते हैं, ताकि सत्कर्म करके वैकुण्ठधाम प्राप्त कर सकें. 

कदा वयं हि लप्स्यामो जन्म भारत-भूतले।
कदा पुण्येन महता प्राप्यस्यामः परमं पदम्।

महाभारत के भीष्मपर्व में भारतवर्ष की महिमा का गान इस प्रकार किया गया है:

अत्र ते कीर्तिष्यामि वर्ष भारत भारतम्
प्रियमिन्द्रस्य देवस्य मनोवैवस्वतस्य।
अन्येषां च महाराजक्षत्रियारणां बलीयसाम्।
सर्वेषामेव राजेन्द्र प्रियं भारत भारताम्॥

गरुड पुराण में राष्ट्रीय स्वतन्त्रता की अभिलाषा कुछ इस प्रकार व्यक्त हुई है-

स्वाधीन वृत्तः साफल्यं न पराधीनवृत्तिता।
ये पराधीनकर्माणो जीवन्तोऽपि ते मृताः॥

रामायण में रावणवध के पश्चात राम, लक्ष्मण से कहते हैं-

अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥

(अर्थ : हे लक्ष्मण ! यद्यपि यह लंका स्वर्णमयी है, तथापि मुझे इसमें रुचि नहीं है. (क्योंकि) जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं.

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