भारत के इतिहास का एक गौरवपूर्ण नाम है पृथ्वीराज चौहान. यह क्षत्रिय महारथी जितना परमवीर था उतना ही दयालु और क्षमाशील था, जिसने अपने पराक्रम से हिन्दुस्तान के गौरव में बेहिसाब इजाफा किया लेकिन हाथ आए शत्रु के साथ दयी करने की भूल भी कर दी. शत्रु पर दया की ये भूल हिन्दुस्तान के इतिहास पर भारी पड़ गई. वो योद्धा और कोई नहीं बल्कि दिल्ली की गद्दी के आखिरी हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान हैं. पृथ्वीराज तृतीय को देश पृथ्वीराज चौहान के नाम से जानता है.
शिहाबुद्दीन उर्फ़ मुइज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी 12वीं शताब्दी का अफ़ग़ान सेनापति था जो 1202 ई. में ग़ौरी साम्राज्य का सुल्तान बना. ग़ोरी राजवंश की नीव अला-उद-दीन जहानसोज़ ने रखी और सन् 1161 में उसके देहांत के बाद उसका पुत्र सैफ़-उद-दीन ग़ोरी सिंहासन पर बैठा. अपने मरने से पहले अला-उद-दीन जहानसोज़ ने अपने दो भतीजों - शहाबुद्दीन (मुहम्मद ग़ोरी) और ग़ियास-उद-दीन - को क़ैद कर रखा था लेकिन सैफ़-उद-दीन ने उन्हें रिहा कर दिया. उस समय ग़ोरीवंश ग़ज़नवियों और सलजूक़ों की अधीनता से निकलने के प्रयास में था. उन्होंने ग़ज़नवियों को
महमूद गजनवी गजनी का प्रमुख शासक था जिसने 997 से 1030 तक शासन किया. वह सुबक्त्गीन का पुत्र था. भारत की धन-संपत्ति से आकर्षित होकर, गजनवी ने भारत पर कई बार आक्रमण किए. वास्तव में गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया. उसके आक्रमण का मुख्य मकसद भारत की संपत्ति को लूटना था. महमूद गजनी ने पहली बार 1001 ईस्वी में आधुनिक अफ़्गानिस्तान और पाकिस्तान पर हमला किया था. इसने हिन्दू शासक जयपाल को पराजित किया जिसने बाद में आत्महत्या कर ली और उसका पुत्र आनंदपाल उसका उत्तराधिकारी बना. गजनी ने भाटिया पर 1005 ईस्वी में और मुल्तान पर 1006 ईस्वी में हमला किया. इसी दौरान आनंदपाल ने उस पर हमला किया. गजनी के महमूद ने भटिंडा के शासक सुखपाल पर 1007 ईस्वी में
मुहम्मद बिन क़ासिम इस्लाम के शुरूआती काल में उमय्यद ख़िलाफ़त के एक अरब सिपहसालार थे. उनहोंने 17 साल की उम्र में भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी इलाक़ों पर हमला बोला और सिन्धु नदी के साथ लगे सिंध और पंजाब क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर लिया. यह अभियान भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाले मुस्लिम राज का एक बुनियादी घटना-क्रम माना जाता है. इन्होंने राजा दाहिर को रावर के युद्ध में बुरी तरह परास्त किया. मुहम्मद बिन क़ासिम का जन्म आधुनिक सउदी अरब में स्थित ताइफ़ शहर में हुआ था. वह उस इलाक़े के अल-सक़ीफ़ क़बीले का सदस्य
खलीफा अरबी भाषा में ऐसे शासक को कहते हैं जो किसी इस्लामी राज्य या अन्य शरिया (इस्लामी कानून) से चलने वाली राजकीय व्यवस्था का शासक हो. पैगम्बर मुहम्मद की 8 जून 632 ईसवी में मृत्यु के बाद खलीफा पूरे मुस्लिम क्षेत्र के राजनैतिक नेता माने जाते थे. खलीफाओं का सिलसिला अन्त में जाकर उस्मानी साम्राज्य के पतन पर तुर्की के शासक मुस्तफा कमालपाशा द्वारा 1924 ई॰ में ही समाप्त हुआ. अरबी में 'खलीफा' शब्द का मतलब 'प्रतिनिधि' या 'उत्तराधिकारी' होता है. पैगम्बर मुहम्मद की 632 ईसवी में मृत्यु के बाद पूरे मुस्लिम जगत की राजनैतिक बागडोर संभालने वालों को
सेन राजवंश भारत का एक राजवंश का नाम था, जिसने 12वीं शताब्दी के मध्य में बंगाल पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया. सेन राजवंश ने बंगाल पर 160 वर्राषो तक राज किया. अपने चरमोत्कर्ष के समय भारतीय महाद्वीप का पूर्वोत्तर क्षेत्र इस साम्राज्य के अन्तर्गत आता था. इस वंश का मूलस्थान कर्णाटक था. पालवंश के राजा देवपाल के समय से पाल सम्राटों ने कर्णाटक के कुछ साहसी वीरों को अधिकारी पदों पर नियुक्त किया. कालांतर में ये अधिकारी, जो दक्षिण से आए थे, शासक बन गए और स्वयं को राजपुत्र कहने लगे.
पालवंश पूर्व मध्यकालीन राजवंश था जिन्होंने मगध पर 750ई. से लेकर 1174 ई. तक शासन किया. जब हर्षवर्धन काल के बाद समस्त उत्तरी भारत में राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक गहरा संकट उत्पन६न हो गया, तब बिहार, बंगाल और उड़ीसा के सम्पूर्ण क्षेत्र में पूरी तरह अराजकत फैली थी. इसी समय गोपाल ने बंगाल में एक स्वतन्त्र राज्य घोषित किया. जनता द्वारा गोपाल को सिंहासन पर आसीन किया गया था. वह योग्य और कुशल शासक था, जिसने 750 ई. से 770ई. तक शासन किया. इस दौरान उसने औदंतपुरी (बिहार शरीफ) में एक मठ तथा विश्वविद्यालय का निर्माण
वह बहुत खूबसूरत थी, उसकी आंखें बड़ी-बड़ी और काया बेहद आकर्षक थी. जो भी उसे देखता था वह अपनी नजरें उस पर से हटा नहीं पाता था. लेकिन उसकी यही खूबसूरती, उसका यही आकर्षण उसके लिए श्राप बन गया. एक आम लड़की की तरह वो भी खुशी-खुशी अपना जीवन जीना चाहती थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका. वह अपने दर्द को कभी बयां नहीं कर पाई और अंत में वही हुआ जो उसकी नियति ने उससे करवाया. यही खूबसूरती आम्रपाली के लिए जी का जंजाल बना और कोठे पर लाकर बैठा दिया. वह किसी की पत्नी तो नहीं बन सकी लेकिन संपूर्ण नगर की नगरवधू जरूर बन गई. आम्रपाली ने अपने लिए यह जीवन स्वयं नहीं चुना
पुष्यभूति राजवंश जिसे वर्धन वंश के रूप में भी जाना जाता है, ने छठी और सातवीं शताब्दी के दौरान उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया. पुष्यभूति श्रीकांत जनपद (आधुनिक कुरुक्षेत्र जिला ) में रहते थे, जिनकी राजधानी थानेसर थी. शिव के एक भक्त, पुष्यभूति "दक्षिण" के एक शिक्षक, भैरवाचार्य के प्रभाव में, एक श्मशान भूमि पर एक तांत्रिक अनुष्ठान में शामिल हो गए. इस अनुष्ठान के अंत में, एक देवी ने उन्हें राजा का अभिषेक किया और उन्हें एक महान राजवंश के संस्थापक के रूप में आशीर्वाद दिया. पुष्यभूति वंश ने मूल रूप से अपनी राजधानी थानेसर के आसपास के एक छोटे से क्षेत्र
गुप्त राजवंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था. इतिहासकारों द्वारा इस अवधि को भारत का स्वर्ण युग माना जाता है. मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल में भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही. मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनः स्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है. गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था. गुप्त राजवंश की स्थापना महाराजा गुप्त ने लगभग 275 ई.में की थी. उनका वास्तविक नाम श्रीगुप्त था. श्रीगुप्त
मगध साम्राज्य के महान मौर्य सम्राट अशोक की मृत्यु लगभग 236 ई.पू. में हुई थी. मौर्य सम्राट की मृत्यु के उपरान्त करीबन दो सदियों से चले आ रहे शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य का विघटन होने लगा. अशोक के उपरान्त अगले पाँच दशक तक उनके निर्बल उत्तराधिकारी शासन संचालित करते रहे. मौर्य सम्राज्य का अन्तिम सम्राट वृहद्रथ था जिसके शासन काल में भारत पर विदेशी आक्रमण बढते जा रहे थे. सम्राट बृहद्रथ ने उनका मुकाबला करने से मना कर दिया. तब प्रजा और सेना में विद्रोह होने लगा. उस समय पुष्यमित्र शुंग मगध का