31 May 2022

विद्यापति

विद्यापति (1352-1448ई) मैथिली और संस्कृत कवि, संगीतकार, लेखक, दरबारी और राज पुरोहित थे. वह शिव के भक्त थे, लेकिन उन्होंने प्रेम गीत और भक्ति वैष्णव गीत भी लिखे. उन्हें 'मैथिल कवि कोकिल' (मैथिली के कवि कोयल) के नाम से भी जाना जाता है. विद्यापति का प्रभाव केवल मैथिली और संस्कृत साहित्य तक ही सीमित नहीं था, बल्कि अन्य पूर्वी भारतीय साहित्यिक परम्पराओं तक भी था. उन्हें "बंगाली साहित्य का जनक" कहा है. विद्यापति भारतीय साहित्य की 'शृंगार-परम्परा' के साथ-साथ 'भक्ति-परम्परा' के प्रमुख स्तंभों मे से एक और मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं. इनके काव्यों में मध्यकालीन मैथिली भाषा के स्वरूप का दर्शन किया जा सकता है. इन्हें वैष्णव, शैव और शाक्त भक्ति के सेतु के रूप में भी स्वीकार किया गया है. मिथिला के लोगों को 'देसिल बयना

गुरु गोविंद सिंह

गुरु गोविंद सिंह सिखो के दसवें गुरु थे. इसके अलावा वह एक दार्शनिक, कवि और महान योद्धा थे. गोबिंद राय के रूप में जन्मे, वे नौवें सिख गुरु तेग बहादुर के बाद दसवे सिख गुरु के रूप में उभरे. गुरु तेग बहादुर को मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेशानुसार सार्वजनिक रूप से सिर कलम कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने इस्लाम में परिवर्तित होने से इनकार कर दिया था. इस अत्याचार के खिलाफ गुरु गोविंद सिंह ने खालसा नामक सिख योद्धा समुदाय की स्थापना की. जिसे सिख धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में चिह्नित किया. उन्होंने पाँच लेखों को पाँच ककार के रूप में प्रसिद्ध भी पेश किया और हर समय पहनने के लिए

गुरु तेग बहादुर सिंह

भारत में सभी धर्मों को समान नजर से देखा जाता है लेकिन यह कथन हमेशा सिर्फ कागजी ही लगता है. इतिहास गवाह है कि भारत में धर्म के नाम पर बहुत ही क्रुर दंगे हुए हैं. यह दंगे ना सिर्फ भारत की धर्म-निरपेक्षता पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा करते हैं बल्कि यह दंगे उस देश में हो रहे हैं जहा महापुरुषों ने अपने जीवन का बलिदान तक देकर धर्म की रक्षा की है. धर्म के नाम पर मर मिटने की जब भी बात होती है तो सिख समुदाय के गुरुतेग बहादुर जी का नाम बड़ी ही इज्जत और सम्मान के साथ लिया जाता है. अपने धर्म के नाम पर उन्होंने अपने सिर को भी कुर्बान कर दिया. आज उनका बलिदान दिवस है तो चलिए जानते हैं उनके बारें में कुछ बातें.

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप का नाम भारत के इतिहास में उनकी बहादुरी के कारण अमर है. वह अकेले राजपूत राजा थे जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की. उनका जन्म आज ही के दिन यानी 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ किले में हुआ था. उनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह था और माता महारानी जयवंता बाई थीं. अपने परिवार की वह सबसे बड़ी संतान थे. उनके बचपन का नाम कीका था. बचपन से ही महाराणा प्रताप बहादुर और दृढ़ निश्चयी थे. सामान्य शिक्षा से खेलकूद एवं हथियार बनाने की कला सीखने में उनकी रुचि अधिक थी. उनको धन-दौलत की नहीं बल्कि मान-सम्मान की ज्यादा परवाह थी. उनके बारे में मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है, 'इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है. धन-दौलत खत्म हो जाएंगे लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे. प्रताप ने धन-दौलत को छोड़ दिया लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया. हिंद के सभी राजकुमारों में अकेले उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा.

भारत के महान हिन्दू ह्रदय सम्राट राणा सांगा

राणा सांगा (महाराणा संग्राम सिंह) उदयपुर में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे तथा राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र थे. महाराणा संग्राम सिंह, महाराणा कुंभा के बाद,सबसे प्रसिद्ध महाराजा थे. मेवाड़ में सबसे महत्वपूर्ण शासक. इन्होंने अपनी शक्ति के बल पर मेवाड़ साम्राज्य का विस्तार किया और उसके तहत राजपूताना के सभी राजाओं को संगठित किया. रायमल की मृत्यु के बाद, 1509 में, राणा सांगा मेवाड़ के महाराणा बन गए. राणा सांगा ने मेवाड़ में 1509 से 1528 तक शासन किया, जो आज भारत के राजस्थान प्रदेश में स्थित है. राणा सांगा ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी राजपूतों को एक किया. राणा सांगा सही मायनों में एक वीर योद्धा व शासक थे जो

भारत के महान वीरांगना पद्मावती



आज कहानी है एक ऐसे रानी की, जो इतिहास की सबसे चर्चित रानियों में से एक है. आज भी राजस्थान में चित्तौड़ की इस रानी की सुंदरता के साथ-साथ शौर्य और बलिदान के किस्से प्रसिद्ध हैं. लेकिन इन्हें ख्याति मिली कुछ वर्ष पूर्व जब उनके और क्रूर मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी पर फ़िल्म बनी और पूरे इतिहास को तोड़ मरोड़ कर हमारे समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया. हम बात कर रहे हैं चितौड़ की शेरनी जिसे रानी पद्मावती के नाम से भी जानते हैं.

जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य के अनुसार, राजकुमारी पद्मिनी का जन्म 1270 ईसवी में सिंहल देश (मौजूदा श्रीलंका) के राजा गंधर्वसेन और रानी चंपावती के महल में हुआ था. बचपन में पदमिनी

पृथ्वीराज चौहान



भारत के इतिहास का एक गौरवपूर्ण नाम है पृथ्वीराज चौहान. यह क्षत्रिय महारथी जितना परमवीर था उतना ही दयालु और क्षमाशील था, जिसने अपने पराक्रम से हिन्दुस्तान के गौरव में बेहिसाब इजाफा किया लेकिन हाथ आए शत्रु के साथ दयी करने की भूल भी कर दी. शत्रु पर दया की ये भूल हिन्दुस्तान के इतिहास पर भारी पड़ गई. वो योद्धा और कोई नहीं बल्कि दिल्ली की गद्दी के आखिरी हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान हैं. पृथ्वीराज तृतीय को देश पृथ्वीराज चौहान के नाम से जानता है. 
पराक्रम और साहस जिनके हथियार थे. दया करुणा जिनके श्रृंगार. पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ईस्वी में माना जाता है. पिता सोमेश्वर चौहान अजमेर के राजा थे. पृथ्वी राज की मां महारानी कर्पूरादेवी स्वयं एक वीरांगना थीं. जयानक नाम के कश्मीरी कवि द्वारा रचित पृथ्वीराज विजय महाकाव्य में लिखा है कि उन्हें 6 भाषाओं का अच्छा ज्ञान था.

भगवान महावीर

भगवान महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे, जिनका जीवन ही उनका संदेश है. उनके सत्य, अहिंसा, के उपदेश एक खुली किताब की भाँति है. महावीर ने एक राज परिवार में जन्म लिया था. उनके परिवार में ऐश्वर्य, धन-संपदा की कोई कमी नहीं थी, जिसका वे मनचाहा उपभोग भी कर सकते थे किंतु युवावस्था में क़दम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह, सुख-ऐश्वर्य और राज्य को छोड़कर यातनाओं को सहन किया. सारी सुविधाओं का त्याग कर वे नंगे पैर पैदल यात्रा करते रहे.

30 May 2022

गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था. उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ. उनका पालन पोषण महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया. 29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए. वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए.

राजा पोरस

राजा पोरस पौरों का राजा था. राजा पोरस का राज्य पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक फैला हुआ था. वर्तमान लाहौर के आस-पास इसकी राजधानी थी.
 महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे. पोरस का साम्राज्य जेहलम (झेलम) और चिनाब नदियों के बीच स्थित था. पोरस अपनी बहादुरी के लिए विख्यात था. उसने उन सभी के समर्थन से अपने साम्राज्य का निर्माण किया था जिन्होंने खुखरायनों पर उसके नेतृत्व को स्वीकार कर लिया था. जब सिकंदर हिन्दुस्तान आया और झेलम के समीप पोरस के साथ उसका संघर्ष हुआ, तब पोरस को खुखरायनों का भरपूर समर्थन मिला था. इस तरह पोरस, उनका शक्तिशाली नेता बन गया.

दुनिया में राजनीति एंव कूटनीति के जनक चाणक्य

चाणक्य भारत के महान अर्थशास्त्री, राजनीति के ज्ञाता मानें जाते हैं. वे बचपन से ही अन्य बालकों से भिन्न थे. उनके तार्किकता का कोई जवाब नहीं था. चाणक्य को बचपन से ही वेद पुराणों में बहुत रूचि थी. इतिहास में उनका नाम एक कुशल नेतृत्वकर्ता व बड़े रणनीतिकारों में शामिल है. इनके सर्वगुणसंपन्न होने की ही वजह से ही इनको अनेक नामों से पुकारा जाता है, जिसमें कौटिल्य, विष्णुगुप्त, वात्स्यान, मल्ल्नाग व् अन्य नाम शामिल हैं. चाणक्य का जन्म 350 ई.पू. में तक्षशिला में हुआ था. उनके पिता चणक मुनि एक महान शिक्षक थे. इनके पिता ने बचपन में उनका नाम कौटिल्य रखा था. एक शिक्षक होने के नाते चणक मुनि अपने राज्य की रक्षा के लिए बेहद चिंतित थे.

संत रविदास

गुरु रविदास मध्यकाल में एक भारतीय संत थे जिन्होंने जात-पात के अंतर्विरोध में कार्य किया. इन्हें सतगुरु अथवा जगतगुरु की उपाधि दी जाती है. इन्होने रैदासिया अथवा रविदासिया पंथ की स्थापना की और इनके रचे गये कुछ भजन सिख लोगों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं. 
गुरू रविदास  का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था. उनके पिता का नाम संतोख दास तथा माता का नाम कलसां देवी था. उनकी पत्नी का नाम लोना देवी बताया जाता है. रविदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था. वे जूते बनाने का काम किया करते थे औऱ ये उनका व्यवसाय था और अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे. संत रामानन्द के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया.

सूरदास

सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी में रुनकता नामक गाँव में हुआ. यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है. कुछ विद्वानों का मत है कि सूर का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बाद में ये आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे. सूरदास के पिता रामदास गायक थे.
 सूरदास जन्म से ही अन्धे थे, किन्तु सगुन बताने की उनमें अद्भुत शक्ति थी. 6 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अपनी सगुन बताने की विद्या से माता-पिता को चकित कर दिया था. किन्तु इसी के बाद वे घर छोड़कर चार कोस दूर एक गाँव में तालाब के किनारे रहने लगे थे. सगुन बताने की विद्या के कारण शीघ्र ही उनकी ख्याति चारों और फैल गई. गान विद्या में भी

कबीरदास

संत कबीरदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे. वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है. लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था. कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व - प्रेमी का अनुभव था. कबीर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी. समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है. कबीरदास के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं. कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ. कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्हें हिन्दू धर्म की बातें मालूम हुईं. 

राजा दाहिर सिंह लोधी

राजा दाहिर सिंह लोधी सिंध के अंतिम हिंदू राजा थे. उनके समय में ही अरबों ने सर्वप्रथम सन 712 में भारत (सिंध) पर आक्रमण किया था. मुहम्मद बिन क़ासिम मिशन सिंध पर आक्रमण किया था जहां पर राजा दहिर सिंह ने उसे रोका और उसके साथ युद्ध लड़ा उनका शासन काल 663 से 712 ईसवी तक रहा. उन्होंने अपने शासनकाल में अपने सिंध प्रांत को बहुत ही मजबूत बनाया. इस समय अरब में खलीफा शासन लागु हो गया था और खलीफा मोहम्मद साहब के पारिवारिक सदस्य हुसैन इब्न अली और अन्य लोगों मारना चाहता था तो उन लोगो ने इनसे शरण मांगी, इन्होंने उनको शरण दी. जब

29 May 2022

दुनिया के पहले आयुर्वेदाचार्य महर्षि चरक

चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं. वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे. इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है. इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है. आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है. 300-200 ई. पूर्व लगभग आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है. चरक की शिक्षा तक्षशिला में हुई. इनका रचा हुआ ग्रंथ 'चरक संहिता' आज भी वैद्यक का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है. इन्हें ईसा की प्रथम शताब्दी का बताते हैं.  

दुनिया के पहले शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत

सुश्रुत प्राचीन भारत के प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री तथा विश्व के पहले शल्य चिकित्सक थे. इन्हें "शल्य चिकित्सा का जनक" माना जाता है. सुश्रुत ने प्रसिद्ध चिकित्सकीय ग्रंथ 'सुश्रुत संहिता' की रचना की थी. इस ग्रंथ में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों (साधनों) तथा शस्त्रों (उपकरणों) आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है. 
'सुश्रुत संहिता' के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में काशी में हुआ था. उनका जन्म विश्वामित्र के वंश में हुआ था. इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की थी.

भारतीय चिकित्सा पद्धति में 'सुश्रुत संहिता' को विशेष स्थान प्राप्त है. इसमें शल्य

28 May 2022

दुनिया के पहले नाटककार कालीदास

कालिदास तीसरी- चौथी शताब्दी मेे गुप्त साम्राज्य के संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे. उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएँ की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं. कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं. 
अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है. यह नाटक कुछ उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था. यह पूरे विश्व साहित्य में अग्रगण्य रचना मानी जाती है. मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है और प्रकृति के मानवीकरण का अद्भुत वर्णन काव्य में दिखता है.

महर्षि वाल्मीकि

वाल्मीकि, संस्कृत रामायण के प्रसिद्ध रचयिता हैं जो आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं. उन्होंने संस्कृत मे रामायण की रचना की है. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई. रामायण एक महाकाव्य है जो कि राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से, परिचित करवाता है. वाल्मीकि जी के जीवन से बहुत सीखने को मिलता हैं, उनका व्यक्तितव साधारण नहीं था. उन्होंने अपने जीवन की एक घटना से प्रेरित होकर अपना जीवन पथ बदल दिया, जिसके फलस्वरूप वे महान पूज्यनीय कवियों में से एक बने. यही चरित्र उन्हें महान बनाता हैं और हमें उनसे सीखने के प्रति प्रेरित करता हैं. 
वाल्मीकि जी का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था, इसी दिन को हिन्दू धर्म कैलेंडर में वाल्मीकि जयंती कहा जाता हैं. 

24 May 2022

मुग़ल सम्राज्य (1719 से 1857)

रफ़ी उद-दाराजात अथवा रफ़ीउद्दाराजात अथवा रफ़ी उद-दर्जत का जन्म- 1 दिसम्बर, 1699 को हुआ था और वह दसवाँ मुग़ल बादशाह था. वह रफ़ी उस-शहान का पुत्र तथा अज़ीमुश्शान का भाई था. फ़र्रुख़सियर के बाद 28 फ़रवरी, 1719 को सैयद बंधुओं के द्वारा उसे बादशाह घोषित किया गया था. बादशाह रफ़ी उद-दाराजात बहुत ही अल्प समय (28 फ़रवरी से 4 जून, 1719 ई.) तक ही शासन कर सका. सैय्यद बन्धुओं ने फ़र्रुख़सियर के विरुद्ध षड़यन्त्र रचकर 28 अप्रैल, 1719

19 May 2022

मुग़ल बादशाह फर्रुखशियर

फ़र्रुख़सियर एक मुग़ल बादशाह था जिसने 1713 से 1719 तक हिन्दुस्तान पर हुकूमत की. 
उसका पूरा नाम अब्बुल मुज़फ़्फ़रुद्दीन मुहम्मद शाह फ़र्रुख़ सियर था.  1715 ई. में अंग्रेजो का एक शिष्टमंडल जाॅन सुरमन की नेतृत्व में भारत आया. यह शिष्टमंडल उत्तरवर्ती मुग़ल शासक फ़र्रूख़ सियर की दरबार में 1717 ई. में पहुँचा. उस समय फ़र्रूख़ सियर जानलेवा घाव से पीड़ित था. इस शिष्टमंडल में हैमिल्टन नामक डाॅक्टर थे जिन्होनें फर्रखशियर का इलाज किया था. इससे फ़र्रूख़ सियर खुश हुआ तथा अंग्रेजों को भारत में कहीं भी व्यापार करने की अनुमति तथा अंग्रेज़ों द्वारा बनाऐ गए सिक्के को भारत में सभी जगह मान्यता प्रदान कर दिया गया. फ़र्रूख़ सियर द्वारा जारी किये गए इस घोषणा को ईस्ट इंडिया कंपनी का मैग्ना कार्टा कहा जाता है. मैग्ना कार्टा सर्वप्रथम 1215 ई. में ब्रिटेन में जाॅन-II के द्वारा जारी हुआ था. 

12 May 2022

मुग़ल बादशाह जहाँदारशाह

जहाँदारशाह बहादुरशाह प्रथम के चार पुत्रों में से एक था. बहादुरशाह प्रथम के मरने के बाद उसके चारों पुत्रों 'जहाँदारशाह', 'अजीमुश्शान', 'रफ़ीउश्शान' एवं 'जहानशाह' में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष छिड़ गया. इस संघर्ष में ज़ुल्फ़िक़ार ख़ाँ के सहयोग से जहाँदारशाह के अतिरिक्त बहादुरशाह प्रथम के अन्य तीन पुत्र आपस में संघर्ष के दौरान मारे गये. 51 वर्ष की आयु में जहाँदारशाह 29 मार्च, 1712 को मुग़ल राजसिंहासन पर बैठा. ज़ुल्फ़िक़ार ख़ाँ इसका प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया, तथा असद ख़ाँ 'वकील-ए-मुतलक़' के पद पर बना रहा. ये दोनों बाप-बेटे ईरानी अमीरों के नेता थे. 

मुग़ल बादशाह बहादुरशाह प्रथम

बहादुर शाह प्रथम का जन्म 14 अक्तूबर, सन् 1643 ई. में बुरहानपुर, भारत में हुआ था. बहादुर शाह प्रथम दिल्ली का सातवाँ मुग़ल बादशाह (1707-1712 ई.) था. 'शहज़ादा मुअज्ज़म' कहलाने वाले बहादुरशाह, बादशाह औरंगज़ेब का दूसरा पुत्र था. अपने पिता के भाई और प्रतिद्वंद्वी शाहशुजा के साथ बड़े भाई के मिल जाने के बाद शहज़ादा मुअज्ज़म ही औरंगज़ेब के संभावी उत्तराधिकारी बना. बहादुर शाह प्रथम को 'शाहआलम प्रथम' या 'आलमशाह प्रथम' के नाम से भी जाना जाता है.

09 May 2022

मुगल बादशाह औरंगजेब

औरंगजेब भारत देश के एक महान मुग़ल शासक थे, जिन्होंने भारत में कई वर्षो तक राज्य किया. वे छठे नंबर के मुग़ल शासक थे, जिन्होंने भारत में शासन किया. औरंगजेब ने 1658 से 1707 लगभग 49 साल तक शासन किया, अकबर के बाद यही मुग़ल थे, जो इतने लम्बे समय तक राजा की गद्दी पर विराजमान रहे. इनकी मौत के बाद मुग़ल एम्पायर पूरी तरह हिल गया था, और धीरे धीरे ख़त्म होने लगा था. औरंगजेब ने अपने पूर्वज के काम को बखूबी से आगे बढाया था, अकबर ने जिस तरह मेहनत व लगन से मुग़ल सामराज्य को खड़ा किया था, औरंगजेब

मुग़ल बादशाह शाहजहाँ

शाहजहाँ पाँचवे मुग़ल शहंशाह था. 
सम्राट जहाँगीर के मौत के बाद, छोटी उम्र में ही उन्हें मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में चुन लिया गया था. 1627 में अपने पिता की मृत्यु होने के बाद वह गद्दी पर बैठा. शाहजहाँ का जन्म जोधपुर के शासक राजा उदयसिंह की पुत्री 'जगत गोसाई' के गर्भ से 5 जनवरी, 1592 ई. को लाहौर में हुआ था. उसका बचपन का नाम ख़ुर्रम था. ख़ुर्रम जहाँगीर का छोटा पुत्र था, जो छल−बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ था. वह बड़ा कुशाग्र बुद्धि, साहसी और शौक़ीन बादशाह था. वह बड़ा कला प्रेमी, विशेषकर स्थापत्य कला का प्रेमी था. उसका विवाह 20 वर्ष की

मुग़ल बादशाह जहाँगीर

जहाँगीर एक मुगल सम्राट था जो अपने पिता अकबर के बाद सिंहासन पर बैठा था. मुगल सम्राट जहांगीर को आगरा में बनी “न्याय की जंजीर” के लिए भी याद किया जाता है. जहाँगीर का जन्म 31 अगस्त 1569 को फतेहपुर सीकरी में हुआ था. उनका वास्तविक नाम मिर्ज़ा नूर-उद्दीन बेग़ मोहम्मद ख़ान सलीम जहाँगीर था. उनके पिता का नाम अकबर तथा उनकी माता का नाम मरियम उज़-ज़मानी था. जहाँगीर से पहले अकबर की कोई भी संतानें जीवित नहीं बचती थी, जिसके चलते सम्राट अकबर ने काफी मिन्नतें कीं और फिर बाद सलीम का जन्म हुआ था. जहांगीर को

अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हल्दी घाटी का युद्ध

महाराणा प्रताप का नाम भारत के इतिहास में उनकी बहादुरी के कारण अमर है. वह अकेले राजपूत राजा थे जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की. उनका जन्म आज ही के दिन यानी 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ किले में हुआ था. उनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह था और माता महारानी जयवंता बाई थीं. अपने परिवार की वह सबसे बड़ी संतान थे. उनके बचपन का नाम कीका था. बचपन से ही महाराणा प्रताप बहादुर और दृढ़ निश्चयी थे. सामान्य शिक्षा से खेलकूद एवं हथियार बनाने की कला सीखने में उनकी रुचि अधिक थी. उनको धन-दौलत की नहीं बल्कि मान-सम्मान की ज्यादा परवाह थी. उनके बारे में मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है, 'इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है. धन-दौलत खत्म हो जाएंगे लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे. प्रताप ने धन-दौलत को छोड़ दिया लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया. हिंद के सभी राजकुमारों में अकेले उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा.

06 May 2022

मुग़ल सम्राट अकबर

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल वंश का तीसरा शासक था जिन्होंने 1556 से 1605 तक भारत पर शासन किया. अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है. सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था. बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था. अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं

इस्लामशाह सूरी

इस्लामशाह सूरी दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी का पुत्र और उसका उत्तराधिकारी था. इस्लामशाह का मूल नाम 'जलाल ख़ाँ' था, इसके साथ ही वह 'सलीमशाह' के नाम से भी विख्यात था. इस्लामशाह ने 1545 से 1554 ई. तक शासन किया. उसने राज्य के बाग़ी सरदारों पर कड़ी कार्रवाई की और उनका दमन किया. अपने शासन काल में इस्लामशाह सूरी ने धक्करों के विद्रोहों को पूरी तरह से दबा दिया. इस्लामशाह ने मानकोट का निर्माण करके कश्मीर पर अपने आधिपत्य को और भी मज़बूत किया. पिता द्वारा किये गये बहुत-से शासन सुधारों को उसने जारी रखा और सेना की दक्षता बनाये रखी. भरी जवानी में ही इस्लामशाह सूरी की मृत्यु 1554 ई. में हो गयी.

05 May 2022

शुरी सम्राज्य के संस्थापक शेर शाह सूरी

शेरशाह सूरी भारत में जन्मे पठान थे जिन्होंने हुमायूँ को 1540 में हराकर उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य स्थापित किया था. शेरशाह सूरी ने पहले बाबर के लिये एक सैनिक के रूप में काम किया था जिन्होंने उन्हें पदोन्नत कर सेनापति बनाया और फिर बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया. 1537 में, जब हुमायूँ कहीं सुदूर अभियान पर थे तब शेरशाह ने बंगाल पर कब्ज़ा कर सूरी वंश स्थापित किया था. सन् 1539 में, शेरशाह को चौसा की लड़ाई में हुमायूँ का सामना करना पड़ा जिसे शेरशाह ने जीत लिया. 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को पुनः हराकर भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया और शेर खान की उपाधि लेकर सम्पूर्ण उत्तर भारत पर अपना साम्रज्य स्थापित कर दिया.